नारद मुनि और विष्णु जी की भक्ति कथा जो आपकी सोच बदल देगी
नारद मुनि और विष्णु जी की भक्ति कथा :
नारद मुनि ने भगवान विष्णु से उनके सबसे प्रिय भक्त के बारे में पूछा। पढ़िए यह मनोरंजक और प्रेरक कथा जो भक्ति, समर्पण और नम्रता का महत्व दर्शाती है।
एक बार की बात है, देवर्षि नारद मुनि वैकुंठ धाम में भगवान विष्णु के दर्शन करने पहुंचे। नारद जी, जो सदा भगवान के भजन और कीर्तन में लीन रहते थे, के मन में एक प्रश्न उठा। उन्होंने भगवान विष्णु से बड़े ही आदर के साथ पूछा, “हे प्रभु! आप समस्त विश्व के रचयिता और पालक हैं। आपके असंख्य भक्त हैं, पर क्या आप बता सकते हैं कि आपका सबसे प्रिय भक्त कौन है?”
भगवान विष्णु ने नारद की उत्सुकता को देखकर हल्की मुस्कान के साथ कहा, “नारद, मेरे लिए सभी भक्त प्रिय हैं, पर यदि तुम्हें जानना ही है, तो पृथ्वीलोक पर एक छोटे से गांव में मेरे एक भक्त को देखने जाओ। वह एक साधारण गृहस्थ है, जो अपने परिवार के साथ रहता है।”
नारद मुनि को यह सुनकर आश्चर्य हुआ। वे सोचने लगे कि एक साधारण गृहस्थ कैसे भगवान का सबसे प्रिय भक्त हो सकता है, जबकि वे स्वयं हर पल भगवान का स्मरण करते हैं। उत्सुकता वश, वे तुरंत पृथ्वी पर उस गृहस्थ के गांव पहुंचे।
वहां उन्होंने देखा कि वह गृहस्थ दिनभर अपने खेतों में मेहनत करता, अपने परिवार की देखभाल करता और सुबह-शाम एक छोटी सी पूजा के साथ भगवान विष्णु का नाम लेता। वह दिन में केवल दो बार भगवान को याद करता और फिर अपने कर्तव्यों में व्यस्त हो जाता। नारद मुनि को यह देखकर और अधिक आश्चर्य हुआ।
वे वापस वैकुंठ लौटे और भगवान से बोले, “प्रभु, मैंने उस गृहस्थ को देखा। वह तो दिन में केवल दो बार आपका नाम लेता है, जबकि मैं हर क्षण आपका भजन करता हूं। फिर भी आप उसे मुझसे अधिक प्रिय मानते हैं?”
विष्णु जी ने शांत स्वर में समझाया, “नारद, भक्ति का माप समय या संख्या से नहीं होता। वह गृहस्थ अपने सारे कर्तव्यों को निष्ठा से निभाता है और मेरे प्रति उसके हृदय में शुद्ध प्रेम है। वह बिना किसी अपेक्षा के मेरा स्मरण करता है। तुम्हारी भक्ति भी अनमोल है, पर तुम्हारे मन में यह प्रश्न उठा कि सबसे प्रिय कौन है। यह प्रश्न ही तुममें एक सूक्ष्म अहंकार को दर्शाता है।”
नारद मुनि को अपनी भूल का एहसास हुआ। उन्होंने भगवान के चरणों में सिर झुकाया और बोले, “प्रभु, मैं समझ गया। सच्ची भक्ति वह है, जो निष्काम भाव से और पूर्ण समर्पण के साथ की जाए।”
इसके बाद, भगवान विष्णु ने नारद को और गहरा पाठ पढ़ाने के लिए एक कार्य दिया। उन्होंने एक तेल से भरा दीपक जलाया और नारद से कहा, “इस दीपक को लेकर पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाओ, लेकिन ध्यान रहे, न तेल गिरे और न लौ बुझे।”
नारद मुनि ने दीपक थामा और ब्रह्मांड की यात्रा पर निकल पड़े। वे सावधानी से हर लोक, हर नक्षत्र का भ्रमण करते रहे, उनका सारा ध्यान दीपक पर केंद्रित था। कई युगों बाद, वे वैकुंठ लौटे, दीपक अभी भी जल रहा था।
विष्णु जी ने पूछा, “नारद, इस यात्रा में तुमने कितनी बार मेरा नाम लिया?”
नारद लज्जित होकर बोले, “प्रभु, मैं दीपक को बचाने में इतना व्यस्त था कि आपका नाम लेना भूल गया।”
विष्णु जी ने स्नेह से कहा, “नारद, यही भक्ति का सत्य है। वह गृहस्थ अपने कर्तव्यों में व्यस्त रहते हुए भी मुझमें लीन रहता है। तुमने दीपक को जलाए रखा, यह तुम्हारी एकाग्रता है, पर मेरे स्मरण के बिना वह अधूरी है। सच्ची भक्ति वह है, जो हर कार्य में मेरा नाम जोड़े।”
नारद मुनि ने भगवान की बात को हृदय में उतारा और और अधिक नम्रता व प्रेम के साथ उनकी भक्ति में लीन हो गए।
शिक्षा: सच्ची भक्ति निष्काम भाव, पूर्ण समर्पण और एकाग्रता से की जाती है। भगवान का स्मरण हर कार्य में होना चाहिए, तभी भक्ति पूर्ण होती है।