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जस्टिस वर्मा ने ठुकराया CJI का इस्तीफा प्रस्ताव, SC ने PM, राष्ट्रपति को दी जानकारी

नई दिल्ली, 9 मई 2025: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज जस्टिस यशवंत वर्मा से इस्तीफा देने की मांग की है, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया है। यह मामला तब सुर्खियों में आया जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक तीन सदस्यीय जांच समिति ने जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास पर भारी मात्रा में नकदी मिलने की पुष्टि की। इस घटना के बाद, CJI ने जांच समिति की रिपोर्ट और जस्टिस वर्मा के जवाब को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ साझा किया है, जिससे उनके खिलाफ निष्कासन की प्रक्रिया शुरू करने की सिफारिश की गई है।

मामले की पृष्ठभूमि

14 मार्च 2025 को, जस्टिस वर्मा के दिल्ली के तुगलक क्रिसेंट स्थित आधिकारिक बंगले में आग लगने की घटना हुई। इस दौरान, दमकलकर्मियों ने एक स्टोररूम में भारी मात्रा में जली हुई और बिना जली नकदी की खोज की। उस समय जस्टिस वर्मा और उनकी पत्नी भोपाल में थे, जबकि उनकी बेटी और बुजुर्ग मां घर पर मौजूद थीं। इस घटना के बाद, दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय ने प्रारंभिक जांच शुरू की और अपनी रिपोर्ट CJI को सौंपी।

22 मार्च को, CJI संजीव खन्ना ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जी.एस. संधवालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की जज अनु शिवरामन की तीन सदस्यीय समिति गठित की। इस समिति ने 50 से अधिक गवाहों, जिसमें दिल्ली पुलिस आयुक्त संजय अरोड़ा, दिल्ली अग्निशमन सेवा प्रमुख और जस्टिस वर्मा के आवास पर तैनात सुरक्षा कर्मियों के बयान दर्ज किए।

जांच समिति की रिपोर्ट

3 मई 2025 को, जांच समिति ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट CJI को सौंपी, जिसमें जस्टिस वर्मा के आवास पर नकदी की मौजूदगी की पुष्टि की गई। समिति ने यह भी उल्लेख किया कि आग की घटना के बाद, कुछ बिना जली नकदी रहस्यमय तरीके से गायब हो गई। यह निष्कर्ष जस्टिस वर्मा के उस दावे के विपरीत था, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके आवास पर कोई नकदी नहीं थी और यह उनके खिलाफ साजिश है।

रिपोर्ट के आधार पर, CJI ने 4 मई को जस्टिस वर्मा को पत्र लिखकर जांच रिपोर्ट की प्रति साझा की और उन्हें इस्तीफा देने का विकल्प दिया। हालांकि, जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया और 6 मई को अपने जवाब में आरोपों को खारिज करते हुए इसे उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने की साजिश बताया।

सुप्रीम कोर्ट का कदम

जस्टिस वर्मा के इस्तीफा देने से इनकार करने के बाद, CJI ने सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस प्रक्रिया के तहत 8 मई को जांच समिति की रिपोर्ट और जस्टिस वर्मा के जवाब को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजा। सुप्रीम कोर्ट ने एक आधिकारिक बयान में कहा, “मुख्य न्यायाधीश ने इन-हाउस प्रक्रिया के अनुसार, 3 मई 2025 की तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट और जस्टिस यशवंत वर्मा से प्राप्त 6 मई 2025 के जवाब की प्रति राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी है।”

CJI ने राष्ट्रपति को जस्टिस वर्मा के निष्कासन की प्रक्रिया शुरू करने की सिफारिश की है, जो अब संसद में प्रस्ताव के रूप में आगे बढ़ सकता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 217 के तहत, उच्च न्यायालय के जज को केवल संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित प्रस्ताव के बाद ही हटाया जा सकता है।

जस्टिस वर्मा का पक्ष

जस्टिस वर्मा ने अपनी प्रतिक्रिया में दावा किया कि स्टोररूम, जहां नकदी मिली थी, सभी के लिए सुलभ था और न तो उनके परिवार और न ही स्टाफ ने वहां से कोई नकदी हटाई। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें या उनके परिवार को जली हुई नकदी के कथित थैलों को नहीं दिखाया गया। जस्टिस वर्मा ने इस पूरे मामले को उनकी छवि को नुकसान पहुंचाने की साजिश करार दिया।

आगे की प्रक्रिया

जस्टिस वर्मा को 20 मार्च से किसी भी न्यायिक कार्य से हटा दिया गया है और उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय से उनके मूल कोर्ट, इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया गया है कि उन्हें कोई न्यायिक कार्य सौंपा न जाए।

यदि सरकार CJI की सिफारिश पर संसद में निष्कासन प्रस्ताव लाती है, तो लोकसभा में कम से कम 150 सांसदों या राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होगी। प्रस्ताव स्वीकार होने पर, एक अन्य तीन सदस्यीय समिति गठित की जाएगी, जिसमें एक सुप्रीम कोर्ट जज, एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता शामिल होंगे। यह समिति जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों की औपचारिक जांच करेगी, जिसमें उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर मिलेगा।

यह मामला भारतीय न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्व को रेखांकित करता है। CJI संजीव खन्ना, जो 13 मई 2025 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं, ने इस मामले को तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाने की दृढ़ता दिखाई है। इस घटना ने न केवल जस्टिस वर्मा की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को प्रभावित किया है, बल्कि यह भी सवाल उठाए हैं कि क्या मौजूदा तंत्र न्यायिक भ्रष्टाचार से निपटने में प्रभावी हैं?

जैसे-जैसे यह मामला संसद में आगे बढ़ेगा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या जस्टिस वर्मा अपनी बेगुनाही साबित कर पाते हैं या यह प्रकरण भारतीय न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन जाएगा।


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