Trump-Pakistan Crypto Deal: ट्रम्प पर कितना भरोसा किया जा सकता है?
Trump-Pakistan Crypto Deal: अगर आप मुझसे पूछें कि डोनाल्ड ट्रम्प पर भरोसा किया जा सकता है या नहीं, तो मेरा जवाब होगा – “ये उस दिन के मौसम पर निर्भर करता है!” जी हां, ट्रम्प जैसे नेता के साथ डील करना किसी जुए से कम नहीं है। कभी भारत के दोस्त, तो कभी पाकिस्तान के हमदर्द । ट्रम्प के बयानों और फैसलों को समझ पाना आसान नहीं है। तो आइए, थोड़ा गहराई में जाकर देखें कि भारत को ट्रम्प और अमेरिका के साथ रिश्ते को कैसे देखना चाहिए।
ट्रम्प और पाकिस्तान का क्रिप्टो सौदा ( Trump-Pakistan Crypto Deal )
हाल ही में पाकिस्तान ने एक अमेरिकी कंपनी वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल के साथ क्रिप्टोकरेंसी को लेकर समझौता किया है। अब सोचिए, ये कंपनी किसकी है? इस पर 60% हिस्सेदारी ट्रम्प परिवार की है – उनके बेटे और दामाद शामिल हैं। और ये सौदा करवाया उनके दोस्त और खासमखास स्टीव व्हिटकॉफ ने, जिनका नीति निर्माण से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं, बस ट्रम्प के गोल्फ साथी रहे हैं।
अब ज़रा टाइमिंग देखिए – ये सौदा कश्मीर के पहलगाम हमले के बाद हुआ। ट्रम्प को सब पता था, फिर भी ये डील हुई। क्या ये संयोग था या कुछ और?
कश्मीर पर ट्रम्प की ‘मध्यस्थता’ की सनक
ट्रम्प जब भी माइक पकड़ते हैं, कश्मीर का ज़िक्र जरूर करते हैं। अभी हाल ही में उन्होंने दावा किया कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव कम करवाया है। उन्होंने कहा:
“मैं नहीं कहना चाहता कि मैंने किया, लेकिन मैंने भारत और पाकिस्तान के बीच की समस्या को सुलझाने में मदद की।”
फिर कहते हैं:
“तुम लोग हज़ार साल से लड़ रहे हो। ये बहुत लंबा वक़्त है। पता नहीं, शायद मैं सुलझा भी नहीं पाया।”
अब बताइए, क्या ये बयान हकीकत के आसपास भी है?
पहली बात तो ये कि कश्मीर विवाद हज़ार साल पुराना नहीं है। ये 1947 से शुरू हुआ है। और दूसरी बात कश्मीर कोई व्यापारिक सौदा नहीं है कि बैठकर गप्प मारते हुए हल कर लिया जाए। भारत और पाकिस्तान के लिए ये भावनाओं से जुड़ा मुद्दा है, और भारत साफ कर चुका है – कोई भी बातचीत द्विपक्षीय होगी, तीसरा पक्ष नहीं होगा।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर का सख्त संदेश
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस पर दो टूक जवाब दिया:
“पाकिस्तान के साथ हमारे सारे मामले पूरी तरह से द्विपक्षीय हैं। इसमें किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं हो सकती।”
यानि ट्रम्प की ‘मध्यस्थता’ की बात को भारत ने विनम्र लेकिन साफ तौर पर खारिज कर दिया।
व्यापार और टैरिफ: ट्रम्प के उलझे दावे
ट्रम्प ने ये भी दावा किया कि भारत ने अमेरिका को “ज़ीरो टैरिफ” ऑफर किया है – मतलब अमेरिकी सामान पर कोई आयात शुल्क नहीं। लेकिन भारत ने कभी ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं दिया। जयशंकर ने इसे भी स्पष्ट किया:
“कोई भी व्यापार समझौता तभी होगा जब वह दोनों देशों के लिए लाभकारी हो।”
लेकिन ट्रम्प को इससे फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने Apple को भारत में निर्माण से भी मना कर दिया।
ट्रम्प ने Apple को झाड़ दिया! और बोले, “तुम भारत में फैक्ट्री क्यों लगा रहे हो? अगर भारत को खुश करना है तो लगाओ, वरना मत लगाओ।”
अब ये तो हद ही हो गई। Apple इसलिए भारत आना चाह रहा था क्योंकि चीन में महंगाई और ट्रम्प के टैक्स से वो परेशान हो गया है।
लेकिन ट्रम्प साहब को भारत में निवेश भी खटकने लगा!
अब ये कौन सी दोस्ती है?
ट्रम्प बनाम भारत: तीन झटके, एक ही हफ्ते में
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उन्होंने भारत-पाक तनाव खत्म करवाने का झूठा श्रेय लिया।
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भारत से “ज़ीरो टैरिफ” का दावा किया, जबकि कोई प्रमाण नहीं।
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Apple को भारत में मैन्युफैक्चरिंग से रोका।
ऊपर से उनके परिवार ने पाकिस्तान के साथ एक क्रिप्टो डील कर ली। अब सवाल उठता है – क्या ट्रम्प वाकई भारत के साथ हैं?
ट्रम्प और पैसा: रिश्तों की असली चाभी?
ट्रम्प की प्राथमिकता क्या है, ये छिपा नहीं है – पैसा। कतर से 400 मिलियन डॉलर का विमान डील हो, या पाकिस्तानी क्रिप्टो सौदा – ट्रम्प हर सौदे में मुनाफा देखते हैं। ये रिश्वत नहीं तो और क्या है?
पाकिस्तान, जो आर्थिक रूप से खुद जूझ रहा है, अचानक क्रिप्टो हब बनने की कोशिश कर रहा है। Dawn अख़बार भी कहता है कि पाकिस्तान इस तकनीक को अपनाने के लिए तैयार नहीं है। तो फिर इतनी जल्दी क्यों? जवाब है – ट्रम्प फैमिली का पैसा और प्रभाव।
अमेरिका-पाकिस्तान का पुराना रिश्ता
ये पहली बार नहीं है जब अमेरिका पाकिस्तान के साथ खड़ा नज़र आया हो। 1971 की जंग हो या कारगिल युद्ध, अमेरिका ने अक्सर पाकिस्तान का पक्ष लिया है। यहां तक कि 2019 में बालाकोट स्ट्राइक के बाद भी।
भारत-अमेरिका के रिश्ते जरूर हाल के वर्षों में मजबूत हुए हैं, लेकिन अमेरिका की मूल नीति में बदलाव नहीं दिखता। पाकिस्तान अभी भी उनका “मेजर नॉन-नाटो एलाय” बना हुआ है – मतलब ये रिश्ता केवल नेताओं का नहीं, सिस्टम लेवल पर भी गहरा है।
भारत को क्या करना चाहिए?
तो सवाल ये उठता है – क्या भारत को अमेरिका से दूरी बना लेनी चाहिए? शायद नहीं। लेकिन सावधानी जरूरी है।
भारत को अमेरिका से बिना शर्त, आपसी लाभ के आधार पर संबंध रखने चाहिए। ना कि किसी नेता की शख्सियत के आधार पर। हमें ट्रम्प के दौर को एक अस्थायी अध्याय मानना चाहिए, और अमेरिका की स्थायी संस्थाओं से अपने रिश्ते संभाल कर रखने चाहिए।
रक्षा सौदे और भरोसे की परीक्षा
भारत फिलहाल पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान खरीदने की योजना बना रहा है – अमेरिका और रूस दोनों के प्रस्ताव हैं। लेकिन सवाल उठता है – क्या अमेरिका पर तकनीक आपूर्ति के मामले में भरोसा किया जा सकता है? क्या वे ज़रूरत पड़ने पर भारत को सपोर्ट करेंगे?
यही वो सवाल हैं जिनपर आज भारत को बहुत सोच-समझकर फैसला लेना होगा।
निष्कर्ष: ट्रम्प पर नहीं, सिस्टम पर भरोसा करें
डोनाल्ड ट्रम्प आएंगे और चले जाएंगे। लेकिन अमेरिका की नीतियां और उसके संस्थान वहीं रहेंगे। भारत को अपने निर्णय व्यक्तिगत नेताओं की बातों से नहीं, बल्कि दीर्घकालिक रणनीतिक सोच से लेने होंगे।
भारत को अमेरिका से संबंध रखने चाहिए – पर आंख मूंद कर नहीं, बल्कि खुली आंखों और साफ़ समझ के साथ।
आपका क्या मानना है? क्या ट्रम्प पर भरोसा किया जा सकता है? या हमें अमेरिका से अपने रिश्ते एक सुरक्षित दूरी पर रखने चाहिए? नीचे कमेंट में अपनी राय ज़रूर बताएं।