Caste Census(जातीय जनगणना)- बिहार चुनाव में नीतीश कुमार को लाभ?
बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा से एक निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही, Caste Census (जातीय जंगणना) का मुद्दा फिर से चर्चा में है। नीतीश कुमार, जो जनता दल (यूनाइटेड) के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री हैं, ने इस मुद्दे को अपने पक्ष में मोड़ने की रणनीति अपनाई है। उनकी सरकार द्वारा कराई गई जातीय जनगणना ने न केवल सामाजिक न्याय के लिए एक नया मंच तैयार किया है, बल्कि यह नीतीश कुमार के लिए चुनावी लाभ का एक बड़ा हथियार भी बन गया हइस लेख में, हम探讨 करेंगे कि कैसे जातीय जनगणना नीतीश कुमार को बिहार चुनाव में लाभ पहुंचा सकती है।
Caste Census(जातीय जनगणना) का महत्व
जातीय जनगणना, जिसे बिहार सरकार ने 2023 में लागू किया था, ने राज्य की सामाजिक संरचना को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस जनगणना के अनुसार, बिहार में अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की आबादी लगभग 63% है, जबकि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की हिस्सेदारी भी महत्वपूर्ण है। नीतीश कुमार ने इस डेटा का उपयोग करके सामाजिक न्याय और समावेशी विकास के अपने एजेंडे को और मजबूत किया है।
जातीय जनगणना ने न केवल विभिन्न जातियों की जनसंख्या को स्पष्ट किया, बल्कि उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर भी प्रकाश डाला। नीतीश ने इस जानकारी का उपयोग करके सरकारी योजनाओं को लक्षित समुदायों तक पहुंचाने का दावा किया है, जिससे उनकी छवि एक ऐसे नेता की बनी है जो पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध है।
नीतीश कुमार की रणनीति
नीतीश कुमार ने अपनी राजनीतिक यात्रा में हमेशा सामाजिक इंजीनियरिंग पर जोर दिया है। उनकी पार्टी, जद(यू), ने अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC), महादलित, और महिलाओं को विशेष रूप से लक्षित किया है। जातीय जनगणना के बाद, नीतीश ने निम्नलिखित रणनीतियों को अपनाया:
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आरक्षण में वृद्धि: जनगणना के आधार पर, नीतीश सरकार ने OBC, EBC, SC, और ST के लिए आरक्षण कोटा बढ़ाकर 75% कर दिया। यह कदम पिछड़े वर्गों के बीच उनकी लोकप्रियता को और बढ़ाने में सहायक रहा है।
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महिला वोटरों पर फोकस: नीतीश ने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे कि पंचायती राज में 50% आरक्षण और शराबबंदी। जातीय जनगणना के डेटा का उपयोग करके, उन्होंने महिला-केंद्रित योजनाओं को और प्रभावी ढंग से लागू किया, जिससे महिला वोटरों का समर्थन बढ़ा है।
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EBC और महादलित समर्थन: नीतीश ने EBC और महादलित समुदायों के लिए विशेष योजनाएं शुरू की हैं, जैसे कि मुफ्त शिक्षा, रोजगार के अवसर, और आर्थिक सहायता। ये कदम इन समुदायों में उनकी स्वीकार्यता को और मजबूत करते हैं।
चुनावी लाभ
2024 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी, जद(यू), ने 16 में से 12 सीटें जीतकर शानदार प्रदर्शन किया। यह सफलता उनकी जातीय जनगणना रणनीति का परिणाम थी, जिसने EBC, महादलित, और महिला वोटरों को उनके पक्ष में एकजुट किया। 2025 के विधानसभा चुनाव में भी यही रणनीति नीतीश के लिए लाभकारी साबित हो सकती है।
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विपक्ष का कमजोर होना: राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस जैसे विपक्षी दल, जो MY-BAAP (मुस्लिम, यादव, बहुजन, अगड़ा, आधी आबादी, और गरीब) जैसे समीकरणों पर निर्भर हैं, जनगणना के बाद नीतीश की रणनीति के सामने कमजोर पड़ रहे हैं। RJD का प्रभाव मुख्य रूप से यादव और मुस्लिम वोटरों तक सीमित है, जबकि नीतीश ने व्यापक जातीय आधार बनाया है।
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NDA के साथ गठबंधन: नीतीश का NDA के साथ गठबंधन उन्हें BJP के मजबूत संगठनात्मक ढांचे और हिंदुत्व वोटों का लाभ देता है। साथ ही, उनकी जातीय जनगणना रणनीति NDA को OBC और EBC वोटों को मजबूत करने में मदद करती है।
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विकास और सुशासन की छवि: नीतीश ने जातीय जनगणना को विकास और सुशासन के साथ जोड़ा है। उनकी प्रगति यात्रा और “जब बात बिहार की हो, नाम सिर्फ नीतीश कुमार का हो” जैसे नारे उनकी नेतृत्व क्षमता को उजागर करते हैं।
चुनौतियां
हालांकि, नीतीश के लिए सब कुछ आसान नहीं है। कुछ चुनौतियां हैं जो उनकी रणनीति को प्रभावित कर सकती हैं:
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विपक्ष का हमला: RJD और अन्य विपक्षी दल नीतीश पर “पलटूराम” का तमगा लगाकर उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हैं।
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BJP के साथ तनाव: NDA गठबंधन में BJP के कुछ नेताओं, जैसे गिरिराज सिंह, के साथ तनाव की खबरें समय-समय पर सामने आती हैं।
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स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं: नीतीश की उम्र और स्वास्थ्य को लेकर चर्चाएं उनकी छवि को प्रभावित कर सकती हैं।
जातीय जनगणना ने नीतीश कुमार को बिहार की राजनीति में एक नया अवसर प्रदान किया है। उनकी रणनीति, जो सामाजिक न्याय, महिला सशक्तिकरण, और EBC-महादलित समर्थन पर आधारित है, 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में उन्हें मजबूत स्थिति में ला सकती है। हालांकि, विपक्षी दलों और गठबंधन की आंतरिक चुनौतियों से निपटना उनके लिए महत्वपूर्ण होगा। नीतीश की यह रणनीति न केवल बिहार की राजनीति को प्रभावित करेगी, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी जातीय जनगणना के महत्व को उजागर करेगी।