कनाडा चुनाव 2025: मार्क कार्नी की लिबरल पार्टी को मिली ऐतिहासिक जीत
कनाडा में 28 अप्रैल 2025 को हुए आम चुनावों में लिबरल पार्टी ने चौंकाने वाली जीत हासिल की है। इस जीत के नायक हैं—नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी, जिन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की धमकियों और व्यापार युद्ध के माहौल के बीच जीत हासिल की है।
अमेरिका की धमकियों के बीच एकजुट हुआ कनाडा
ओटावा में अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए मार्क कार्नी ने खास तौर पर कनाडा की एकता और राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता पर ज़ोर दिया। उन्होंने साफ़ कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और कनाडा के बीच जो आपसी सहयोग का दौर चला था, वो अब खत्म हो चुका है। उन्होंने भावुक होते हुए कहा, “हम अमेरिकी धोखे से उबर चुके हैं, लेकिन हमें इससे मिले सबक कभी नहीं भूलने चाहिए।”
कौन हैं मार्क कार्नी?
60 वर्षीय मार्क कार्नी पहली बार किसी चुनाव में उतरे और प्रधानमंत्री पद भी हाल ही में संभाला है, जब उन्होंने जस्टिन ट्रूडो की जगह ली थी। इससे पहले वे ब्रिटेन और कनाडा के केंद्रीय बैंक गवर्नर रह चुके हैं। उन्होंने अपनी आर्थिक विशेषज्ञता और वैश्विक अनुभव के दम पर जनता को भरोसा दिलाया कि वो कनाडा को अमेरिका के व्यापारिक दबाव से निकाल सकते हैं।
कार्नी ने वादा किया है कि वे अमेरिका पर व्यापारिक निर्भरता को कम करेंगे और कनाडा के लिए नई अंतरराष्ट्रीय व्यापार साझेदारियाँ विकसित करेंगे।
बहुमत तो मिला, लेकिन सरकार बनाने के लिए छोटे दलों की मदद संभव
हालांकि चुनाव परिणामों में लिबरल पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, लेकिन ये साफ़ नहीं हो पाया है कि उन्हें पूर्ण बहुमत मिलेगा या नहीं। अगर बहुमत से थोड़ी दूरी रह गई, तो उन्हें छोटे दलों के सहयोग से सरकार बनानी पड़ सकती है।
जगमीत सिंह को बड़ा झटका
इस चुनाव में कनाडाई सिख नेता जगमीत सिंह को भी करारी हार का सामना करना पड़ा। 2019 से वो जिस बर्नाबी साउथ (अब बर्नाबी सेंट्रल) सीट से सांसद थे, वहां से वे तीसरे स्थान पर रहे। यह उनके राजनीतिक करियर के लिए एक बड़ा झटका है।
ट्रूडो का जाना और NDP की हार
लिबरल पार्टी की इस शानदार वापसी के पीछे एक बड़ा कारण जस्टिन ट्रूडो का हटना भी है। ट्रूडो के नेतृत्व में पार्टी की लोकप्रियता लगातार गिर रही थी, और उनकी सहयोगी पार्टी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) को इस चुनाव में बड़ा नुकसान हुआ है। NDP 12 सीटों का न्यूनतम आंकड़ा भी पार नहीं कर सकी और अब उसकी आधिकारिक पार्टी की मान्यता भी खत्म हो गई है।
NDP का गिरता ग्राफ
NDP, जो आम तौर पर सामाजिक लोकतंत्र (social democratic) विचारधारा की पार्टी मानी जाती है और लिबरल पार्टी से थोड़ा वामपंथी रुख रखती है, लंबे समय से कनाडा की संसद में तीसरे या चौथे स्थान पर रही है। लेकिन इस बार के नतीजे बताते हैं कि जनता ने उनके कामकाज से संतोष नहीं जताया।
भारत-कनाडा संबंध: क्या नया दौर शुरू होगा?
अब जब कनाडा में मार्क कार्नी की सरकार बन चुकी है, एक बड़ा सवाल यह उठता है—क्या भारत और कनाडा के बीच बिगड़े रिश्ते अब सुधर पाएंगे?
ट्रूडो के कार्यकाल में रिश्तों में आई थी खटास
पिछले कुछ वर्षों में भारत और कनाडा के संबंध काफी तनावपूर्ण रहे हैं, खासकर जब प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने एक खालिस्तानी अलगाववादी की हत्या के बाद भारत पर सार्वजनिक तौर पर आरोप लगाए थे। उस बयान ने एक कूटनीतिक संकट खड़ा कर दिया था, जो अब तक पूरी तरह सुलझा नहीं है।
भारत ने उस समय साफ कहा था कि कनाडा में अलगाववादी और चरमपंथी तत्वों को जो आज़ादी दी जा रही है, वही दोनों देशों के रिश्तों में गिरावट की वजह है। साथ ही भारत ने उम्मीद जताई थी कि भविष्य में दोनों देश आपसी विश्वास और संवेदनशीलता के आधार पर अपने संबंध सुधार सकते हैं।
क्या कार्नी से बदलेगी दिशा?
मार्क कार्नी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत ने सकारात्मक संकेत दिए हैं। वहीं कार्नी ने भी यह जताया है कि वे भारत के साथ रिश्तों को “पुनर्निर्मित” करना चाहते हैं। यह एक अच्छा संकेत है, खासकर तब जब भारत ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्रिटेन और न्यूजीलैंड जैसे अन्य अंग्रेज़ी भाषी देशों के साथ अपने संबंध मज़बूत कर रहा है, और सिर्फ कनाडा इस कड़ी से थोड़ा अलग दिखाई दे रहा था।
आगे क्या?
अब सब कुछ इस पर निर्भर करेगा कि कार्नी की सरकार कितनी मजबूत है और वे अपने घरेलू एजेंडे में भारत के साथ रिश्तों को कितनी प्राथमिकता देते हैं। अगर वे भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार, शिक्षा और रणनीतिक सहयोग को बढ़ावा देना चाहते हैं, तो उन्हें कनाडा में कट्टरपंथी तत्वों के प्रति एक सख्त और संतुलित रवैया अपनाना होगा।