India Russia Radar Deal
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India Russia Radar Deal : भारत की सीमा सुरक्षा में नया आयाम

India Russia Radar Deal :

भारत ने रूस के साथ “कंटेनर-एस (29B6) ओवर-द-हॉराइजन रडार” के लिए सौदा किया है – यह खबर रक्षा विशेषज्ञों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है। इस लेख में हम जानेंगे कि यह रडार क्या है, इसकी खासियतें क्या हैं, और हमारे लिए यह क्यों महत्वपूर्ण है।

1. ओवर-द-हॉराइजन (OTH) रडार की विशेषताएँ
ओवर-द-हॉराइजन रडार पारंपरिक रडार से एक कदम आगे है, क्योंकि यह धरती के स्तर या क्षितिज के उस पार की वस्तुओं का पता लगा सकता है। कंटेनर-एस (29B6) रडार HF (हाई-फ्रीक्वेंसी) बैंड में काम करता है और आयनमंडल (ionosphere) का उपयोग करके रेडियो तरंगों को वक्राकार करके दूर के लक्ष्य से परावर्तित करता है। इसकी कुछ मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

  • 3000 किमी से अधिक की रेंज: यह रडार 3000 किमी से भी दूर छिपे हुए लक्ष्यों का पता लगा सकता है। इसका अर्थ है कि यह हमारे सीमों के बाहर भी हवा में उठने वाली गतिविधियों को ट्रैक कर सकेगा।

  • 240° निगरानी क्षेत्र (एरक): सामान्य रडार 360° परिवेश को कवर नहीं कर पाते, लेकिन कंटेनर-एस का 240° एरक हमें पश्चिम से लेकर पूर्वी दिशाओं तक विस्तृत दृष्टि प्रदान करता है।

  • 100 किमी उन्नत ऊँचाई कवरेज: पारंपरिक रडार आमतौर पर 20–30 किमी ऊँचाई तक सीमित रहते हैं, जबकि कंटेनर-एस 100 किमी तक की ऊँचाई पर उड़ रहे विमान, मिसाइल या भौतिकीय लक्ष्य को ट्रैक कर सकता है।

  • बिस्टैटिक (bistatic) संरचना: इस रडार में ट्रांसमीटर और रिसीवर अलग-अलग स्थानों पर होते हैं। इस डिज़ाइन के कारण रडार इलेक्ट्रॉनिक जामिंग या साइबर हमलों के प्रति अधिक प्रतिरोधी बन जाता है।

2. कंटेनर-एस रडार का विकास एवं वर्तमान स्थिति
रूस के एनपीके “एनआईआईडार” (NIIDAR) द्वारा विकसित कंटेनर-एस का पहला ऑपरेशनल सिस्टम दिसंबर 2013 में रूस के मोरदोविया क्षेत्र के कोविल्किनो में स्थापित हुआ। दिसंबर 2019 से यह कम्बैट ड्यूटी पर है।

  • पहला रडार कोविल्किनो के पास रिसीवर एंटेना के साथ परिचालित हुआ। ट्रांसमिटर एंटेना कुछ सौ किलोमीटर दूर दूसरे स्थल पर स्थित था।

  • हर रिसीवर एंटेना में 144 मस्त (34 मीटर ऊँचे) थे, जबकि ट्रांसमिटर एंटेना में 36 पुन: कॉन्फ़िगरेबल मस्त थे।

  • रूस वर्तमान में दूसरी साइट (कालिनिनग्राद) में एक अतिरिक्त कंटेनर रडार लगाने की योजना बना रहा है।

3. भारत द्वारा सौदे का महत्व

  1. दूरस्थ निगरानी: हमारी सीमाओं से बहुत दूर उठने वाली गतिविधियों जैसे कि संभावित दुश्मन के स्टेल्थ जेट्स, लंबी दूरी की क्रूज़ मिसाइलें और हाइपरसोनिक वायुयान तक का सटीक पता लगाने की क्षमता हमारी सुरक्षा दृष्टि को बहुधा बढ़ा देगी।

  2. प्राकृतिक विविधता में रणनीतिक लाभ: भारत का उत्तर-पश्चिमी और पूर्वोत्तर सीमावर्ती इलाके पर्वतीय एवं जंगली भू-भाग में फैले हुए हैं। पारंपरिक रडार इन इलाकों में कर्व और बाधाओं के कारण सीमित दिखने वाली क्षमता रखते हैं। परंतु कंटेनर-एस जैसा OTH रडार इन भौगोलिक रکاॅवों से परे देख पाएगा, जिससे हमें अधिक समय पर अग्रिम चेतावनी मिलेगी।

  3. दक्षता एवं समयपूर्व चेतावनी: भारत के पास पहले से ही S-400 त्रिउम्फ (Triumf) जैसी अत्याधुनिक एंटी-एयर सिस्टम हैं। इन सिस्टम को कार्य करने के लिए समयपूर्व डेटा की आवश्यकता होती है कि कब-किधर से हमले की आशंका हो सकती है। कंटेनर-एस हमें 3000 किमी से भी दूर के खतरों का रीयल-टाइम डेटा देगा, जिससे S-400 या अन्य इंटरसेप्शन सिस्टम को जल्दी सक्रिय किया जा सकता है।

4. रणनीतिक परिप्रेक्ष्य में कंटेनर-एस का स्थान

  • स्थल-आधारित एंटी-स्टेल्थ क्षमता: आधुनिक स्टेल्थ विमानों (जैसे चीन का J-20, पैक) और लंबी दूरी की मिसाइलों का मुकाबला करना आसान नहीं है। पारंपरिक रडार इनका पता लगाने में असमर्थ होते हैं। परंतु कंटेनर-एस जैसी उच्च-फ्रीक्वेंसी OTH रडार स्टेल्थ विमानों को भी जटिल एल्गोरिदम और आयनमंडल पर निर्भर तरंगों के माध्यम से ट्रैक कर सकती है।

  • बहु-क्षेत्र (Multi-domain) युद्ध की तैयारी: आजकल के युद्ध अनंतिम नहीं रहते। वायु, समुद्री और साइबर सभी क्षेत्रों में तैयारी की जरूरत होती है। कंटेनर-एस से प्राप्त डेटा समुद्री रडार, उपग्रह, ड्रोन और अन्य सेंसरों की मिली-जुली जानकारी के साथ इंटीग्रेट कर के पूरे खेल को एक उन्नत नेटवर्क में तब्दील किया जा सकता है।

  • हाइब्रिड और प्रोक्सी संघर्षों में बढ़त: सीमापार हमलों में अक्षम्य तरीके से साइबर हमले, ड्रोन स्ट्राइक और स्टेल्थ मिशनों का उपयोग हो रहा है। कंटेनर-एस की लंबी दूरी की निगरानी क्षमता इन सब गतिविधियों का सटीक अनुमान लगा सकती है, जिससे हमारी सेना को निर्णय लेने में फुर्ती मिलेगी।

5. संभावित तैनाती और परिचालन
भारत सरकार ने अभी तक तैनाती की ठोस जानकारी नहीं दी है, लेकिन रक्षा सूत्रों का कहना है कि यह रडार संवेदनशील स्थल, जैसे कि हमारे उत्तर-पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्र (जम्मू-कश्मीर, लद्दाख) या पूर्वोत्तर सीमाएँ (अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड) में लगाया जा सकता है। इन क्षेत्रों से हमारा हवाई मार्ग बंदी लेना कठिन होता है।

  • उत्तर-पश्चिमी सीमा: यहां से पाकिस्तान की ओर से स्टेल्थ जेट्स, ड्रोन और क्रूज़ मिसाइलों के हमले होने की संभावना रहती है। कंटेनर-एस इन लक्ष्यों को लांब समय पहले पकड़ेगा, जिससे हमारी वायु सेना एवं एंटी-एयर फोर्स को तैयारी करने का समय मिलेगा।

  • पूर्वोत्तर और बंगाल की खाड़ी की ओर: चीन के J-20 या J-31 जैसे स्टेल्थ प्लेन की गतिविधियों का अनुमान लगाने के लिए उपयुक्त होगा। इसके अलावा, बंगाल की खाड़ी में लंबी दूरी के बालिस्टिक मिसाइलों या समुद्री लक्ष्य पर निगाह रखी जा सकेगी।

  • डाटा इंटीग्रेशन: प्राप्त सूचना को नेशनल इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस नेटवर्क (NIADN) के साथ जोड़कर वास्तविक समय में अलर्ट जारी किया जा सकेगा। इससे हमारे वायु रक्षा बल (IAF और ADG) को जल्दी-जल्दी निर्णय लेने में मदद मिलेगी।

6. भारत-रूस रक्षा सहयोग में अगला कदम
यह सौदा भारत-रूस के रक्षा सहयोग की एक और कड़ी है। इससे पूर्व भारत ने S-400 त्रिउम्फ एंटी-एयर सिस्टम, सु-30 एमकेआई फाइटर जेट और विभिन्न भागों में सह-निर्माण समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

  • वोरोनिज़-श्रेणी (Voronezh-class) OTH रडार: विशेषज्ञ मानते हैं कि कंटेनर-एस के बाद वोरोनिज़ रडार के लिए भी बातचीत हो सकती है, जो और भी विस्तृत एवं अपने-आप संचालित (highly autonomous) है।

  • टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की संभावनाएँ: सरकारी-से-सरकारी (G2G) डील के तहत हमें रूस से सीधी तकनीकी सहायता मिलने की संभावना है, जिससे भविष्य में हमारे स्वयं के वैज्ञानिक रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान (DRDO) और DRDL अधिक आत्मनिर्भर हो सकें।

  • स्तरित (Layered) वायु रक्षा ढांचा: कंटेनर-एस के साथ S-400, भारतीय एलकेएम एयर डिफेंस और क्षेत्रीय SAM सिस्टम (Akash, Barak) को जोड़कर भारत एक बहु-स्तरीय एंटी-एयर रक्षा तंत्र तैयार कर रहा है।


कंटेनर-एस (29B6) ओवर-द-हॉराइजन रडार का सौदा भारत की सुरक्षा संरचना में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इसकी लंबी दूरी की निगरानी, उच्च ऊँचाई पर कवरेज और स्टेल्थ प्लेन एवं मिसाइलों का पता लगाने की क्षमता हमें मौजूदा एवं आने वाली चुनौतियों से निपटने में मदद करेगी। जैसे-जैसे हमारे पड़ोस में तकनीकी तौर पर उन्नत विमान और हथियार तैनात होते जाएँगे, हमारी सुरक्षा रणनीतियाँ भी उतनी ही प्रगतिशील एवं बहु-स्तरीय होती जाएँगी। कंटेनर-एस इस दिशा में एक मजबूत कदम है, जो हमारी रक्षा तैयारियों में नई जान डाल देगा।


Sources: news.ssbcrack.कॉम, idrw.org

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