Supreme Court of india
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Pegasus जासूसी मामला: आतंकियों पर जासूसी गलत कैसे? सुप्रीम कोर्ट का कहना

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में Pegasus जासूसी विवाद को लेकर सुनवाई हुई, जिसमें अदालत ने एक बड़ा और बेहद ज़रूरी सवाल उठाया – “अगर देश अपनी सुरक्षा के लिए आतंकवादियों के खिलाफ स्पायवेयर का इस्तेमाल कर रहा है तो इसमें गलत क्या है?”

देश की सुरक्षा पहले: सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट संदेश

सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच – जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह – ने साफ शब्दों में कहा कि ऐसा कोई भी दस्तावेज़ जो देश की सुरक्षा और संप्रभुता  से जुड़ा हो, उसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता।

उन्होंने कहा कि Pegasus जैसे स्पायवेयर का इस्तेमाल अगर आतंकवादियों या देश विरोधी तत्वों के खिलाफ हो रहा है, तो उसमें कोई बुराई नहीं है। हां, अगर इसे सिविल सोसाइटी यानी आम नागरिकों या एक्टिविस्ट्स के खिलाफ इस्तेमाल किया गया है, तो वो एक गंभीर मुद्दा है और उस पर विचार किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति को शक है कि उसके मोबाइल या डिवाइस पर Pegasus के ज़रिए निगरानी रखी गई है, तो वो अदालत में याचिका दाखिल कर सकता है। अदालत उस व्यक्ति को जवाब देगी कि क्या वो निगरानी के दायरे में था या नहीं।

लेकिन साथ ही जस्टिस सूर्यकांत ने साफ किया – “यह रिपोर्ट सड़कों पर चर्चा के लिए नहीं बनाई गई है।” इसका मतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की तकनीकी समिति ने जो जांच रिपोर्ट बनाई है, वो आम जनता के लिए सार्वजनिक नहीं की जाएगी, क्योंकि इसमें राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़ी संवेदनशील बातें हो सकती हैं।

‘Pahalgam आतंकी हमले’ का संदर्भ और सतर्कता की अपील

जजों ने देश की वर्तमान सुरक्षा स्थिति का हवाला देते हुए कहा कि हमें सतर्क रहना होगा। उन्होंने हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले, जिसमें 25 पर्यटकों और एक कश्मीरी पोनी राइड ऑपरेटर की जान गई, का उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसे हालात में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े दस्तावेज़ों को सार्वजनिक करना उचित नहीं होगा।

“आतंकियों की निजता की कोई बात नहीं”: सॉलिसिटर जनरल

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा – “आतंकियों की कोई प्राइवेसी नहीं होती।” उन्होंने कोर्ट से पूछा कि अगर Pegasus का इस्तेमाल आतंकवादियों के खिलाफ किया जा रहा है, तो उसमें आपत्ति किस बात की है?

लेकिन सवाल बना रहेगा: किन पर हुआ इस्तेमाल?

Pegasus विवाद की सबसे बड़ी चिंता यही है कि कहीं इस टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग तो नहीं हुआ? क्या पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं या विपक्षी नेताओं पर भी इसका प्रयोग हुआ? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर किसी को आशंका है, तो वो व्यक्तिगत रूप से अदालत का दरवाज़ा खटखटा सकता है।

लेकिन सामूहिक तौर पर पूरी रिपोर्ट को सार्वजनिक करना देश की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है – ये कोर्ट का स्पष्ट संदेश था।

Pegasus विवाद क्या है?

Pegasus विवाद, 2021 में सामने आया एक ऐसा मामला है जिसने दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों में निजता (privacy) और सरकारी निगरानी को लेकर गंभीर बहस छेड़ दी थी। भारत में भी यह मामला राजनीतिक तूफान का कारण बना।

साल 2021 में 17 अंतरराष्ट्रीय समाचार संगठनों के समूह ने एक बड़ी खोजी रिपोर्ट प्रकाशित की। यह रिपोर्ट एक बड़े डेटा लीक पर आधारित थी, जिसमें 50,000 मोबाइल नंबरों की एक लिस्ट सामने आई थी। दावा किया गया कि इन नंबरों की Pegasus नामक स्पायवेयर के ज़रिए निगरानी की गई थी।

Pegasus क्या है?

Pegasus एक अत्याधुनिक स्पायवेयर है, जिसे इज़राइल की साइबर सुरक्षा कंपनी NSO Group ने बनाया है। यह सॉफ्टवेयर किसी स्मार्टफोन में बिना मालूम चले घुस सकता है और उसकी सारी जानकारी – कॉल्स, मैसेज, लोकेशन, कैमरा, माइक्रोफोन – पर नजर रख सकता है।

NSO का दावा है कि वो Pegasus सिर्फ सरकारों को ही आतंकवाद और अपराध से लड़ने के लिए बेचती है।

भारत में किन लोगों के नाम आए सामने?

इस डेटा लीक में जिन भारतीय नामों का ज़िक्र किया गया, उनमें शामिल थे:

  • कांग्रेस नेता राहुल गांधी

  • पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा

  • तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी

  • कई पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, और वकील

इन नामों के सामने आते ही विपक्ष ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए कि वो राजनीतिक विरोधियों और आलोचकों की जासूसी करवा रही है।

सरकार का क्या कहना था?

सरकार ने Pegasus से जुड़ी जासूसी के आरोपों को खारिज करते हुए कहा:

“इन आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है। भारत में निगरानी के लिए एक तय कानूनी प्रक्रिया होती है और हर इंटरसेप्शन कानून के दायरे में होता है।”

सरकार ने यह भी साफ किया कि किसी खास व्यक्ति पर निगरानी के आरोप तथ्यों पर आधारित नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट की जांच: क्या मिला?

Pegasus विवाद के बढ़ते दबाव के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक तकनीकी समिति (technical committee) गठित की, जिसने इन आरोपों की जांच की।

इस जांच में:

  • 29 मोबाइल फोनों की तकनीकी जांच की गई।

  • इनमें से 5 फोन में मालवेयर पाया गया, लेकिन Pegasus का कोई ठोस सबूत नहीं मिला।


 

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