Raid 2 फिल्म समीक्षा ( Raid 2 Review in हिंदी )
Raid 2 जैसी फिल्में आजकल बहुत कम बन रही हैं। न कोई शोर-शराबा, न ही फालतू का प्रचार – लेकिन फिर भी एक दमदार कहानी लेकर आई है जो आपको बाँध कर रखती है। ये फिल्म उस Raid की सीक्वल है जो 2018 में आई थी और अजय देवगन IRS अफसर अमेय पटनायक के रोल में छा गए थे।
अब एक बार फिर वही अमेय लौटा है, लेकिन इस बार उसका सामना है रितेश देशमुख जैसे खतरनाक और चालाक नेता दादा मनोहर भाई से। और यकीन मानिए, रितेश इस रोल में आपको चौंका देंगे।
राजकुमार गुप्ता: एक भरोसेमंद निर्देशक
अगर आपने Aamir, No One Killed Jessica, Raid या फिर Dhan Chakkar देखी है, तो आप जानते हैं कि निर्देशक राजकुमार गुप्ता का ट्रैक रिकॉर्ड बेहद मजबूत है। हाँ, India’s Most Wanted थोड़ी फीकी थी, लेकिन फिर भी वो अपनी फिल्में पूरी ईमानदारी और गहराई से बनाते हैं। Raid 2 में भी वो उस ईमानदारी को बरकरार रखते हैं।
कहानी का सार:
कहानी की शुरुआत होती है एक शहर से जहाँ दादा मनोहर भाई (रितेश देशमुख) को लोग भगवान मानते हैं। अमेय पटनायक (अजय देवगन) को यहाँ अपना 75वां रेड ऑपरेशन करना है, लेकिन ये इतना आसान नहीं होता। पॉलिटिकल पावर, झूठी इमेज और लोकल सपोर्ट – सब कुछ अमेय के खिलाफ होता है।
इसी बीच उसकी पत्नी मालिनी (इस बार वाणी कपूर) और बेटी की सुरक्षा भी खतरे में आ जाती है। अब ये जंग सिर्फ पैसों की नहीं, बल्कि नैतिकता और हिम्मत की भी बन जाती है।
फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी: म्यूजिक और आइटम सॉन्ग
बस एक बात जो मुझे खली – वो है फिल्म में ठूंसे गए गाने। तम्मना भाटिया पर फिल्माया गया गाना “नशा” – भाई, इसका फिल्म की कहानी से क्या लेना-देना? ऐसा लगा जैसे गाना सिर्फ प्री-रिलीज म्यूजिक राइट्स बेचने के लिए डाला गया हो।
जुबिन नौटियाल का गाना “तुम दिल लगी” थोड़ा सुकून देता है, लेकिन बाकी म्यूजिक कहानी को तोड़ता है। एंड क्रेडिट में हनी सिंह और जैकलीन फर्नांडिस का गाना – क्यों भाई?
अभिनय: रितेश देशमुख ने चार चाँद लगा दिए !!
जहाँ अजय देवगन हमेशा की तरह गंभीर और कम बोलने वाले IRS अफसर के रोल में फिट बैठते हैं, वहीं रितेश देशमुख इस बार वाकई चौंकाते हैं। उन्होंने साबित किया कि वो सिर्फ कॉमेडी के लिए नहीं बने – जब मौका मिले तो विलेन के रूप में भी वो जानदार हो सकते हैं।
उनका अंदाज़, डायलॉग डिलीवरी और स्क्रीन प्रेजेंस – हर चीज़ आपको डर और कौतुहल में डाल देती है। अजय का अभिनय अच्छा है, लेकिन पुरानी फिल्मों की तरह एक-सा लगता है। थोड़़ी नई ऊर्जा या ट्विस्ट उनकी परफॉर्मेंस में अच्छा लगता।
सपोर्टिंग कास्ट का दमदार साथ
सौरभ शुक्ला इस बार एक पर्यवेक्षक जैसे नज़र आते हैं, लेकिन उनका चाय की दुकान वाला अवतार भी कहानी में जान डालता है। रजत कपूर, विजेंद्र काला, यशपाल शर्मा, श्रुति पांडे – सभी छोटे-छोटे किरदारों में बड़ा योगदान देते हैं।
अमित सियाल तो अपने हास्य से भी गंभीर दृश्यों में राहत दे जाते हैं।
सुप्रिया पाठक एक मां के रोल में अच्छी लगती हैं, लेकिन उनका ट्रैक थोड़ा हास्यास्पद हो जाता है।
स्क्रीनप्ले और सेटिंग: 1980s की खूबसूरती
फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है इसकी सटीक स्क्रिप्ट और 1980s की पृष्ठभूमि। उस दौर में जानकारी जुटाना, बिना टेक्नोलॉजी के केस सुलझाना – ये सब बहुत दिलचस्प बन जाता है। कोई भटकाव नहीं, बस सीधे मुद्दे की बात – जैसे खुद अमेय का स्वभाव।
कमज़ोरियां: सबप्लॉट्स (उप कथानक)
वाणी कपूर का उप कथानक बहुत ही उथला और जल्दी से-समाप्त किया गया ट्रैक लगता है।
कुछ जगहों पर दो किरदार एक दूसरे से बात करते हुए दिखते हैं, लेकिन असल में वो साथ में शूट नहीं कर रहे होते। कैमरा एंगल से ये बात छिपाई गई है, जो इमोशनल सीन में अखरती है।
क्या देखें या छोड़ें?
‘रेड 2’ अंततः एक ठोस, तेज़ थ्रिलर बनने के लिए विकसित होती है जिससे मैं बस थोड़ा और जोश चाहता था। अगर आप एक सधी हुई कहानी, दमदार विलेन, और 1980s के माहौल में दिलचस्पी रखते हैं – तो Raid 2 ज़रूर देखिए। फिल्म अपने कुछ भटकावों के बावजूद थ्रिल बनाए रखती है।
हाँ, ये फिल्म “वाह-वाह!” टाइप नहीं है, लेकिन आजकल जो औसत फिल्में आती हैं, उनकी तुलना में ये एक ताज़ा हवा के झोंके जैसी है।
Raid 2 अपने जॉनर के साथ ईमानदार है। इसमें मसाला भी है, लेकिन सीमाओं में। रितेश देशमुख की परफॉर्मेंस फिल्म की जान है और राजकुमार गुप्ता ने फिर से साबित किया है कि सस्पेंस और थ्रिल को वह कैसे गहराई से पेश कर सकते हैं। तो “एक बार थिएटर में देखना तो बनता है!”
आपका क्या विचार है Raid 2 के बारे में? नीचे कमेंट करके जरूर बताइए। और अगर ऐसी और रिव्यू चाहिए तो जुड़े रहिये ।
Raid 2 ट्रेलर :