Waqf Bill 2025
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वक़्फ़ एक्ट और 2025 संशोधन बिल : मुख्य बदलाव और उनके असर

वक़्फ़ अमेंडमेंट बिल पास हो गया!” जी हां, बहुत सारी बहसों और देर रात तक चली चर्चाओं के बाद, लोकसभा और राज्यसभा, दोनों से ये बिल पास हो चुका है। NDA सरकार ने इस बिल को पास करवाया, और अब तो राष्ट्रपति महोदया की मोहर भी लग चुकी है। मतलब, अब ये कानून ऑफिशियली लागू हो गया है।जहाँ एक तरफ बीजेपी की अगुवाई वाला NDA इस बिल के सपोर्ट में पूरी ताकत से खड़ा रहा, वहीं दूसरी ओर विपक्षी INDIA गठबंधन ने इसे लेकर एकजुट होकर विरोध जताया।

कई मुस्लिम संगठन और विपक्ष के सांसद इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुँच गए हैं। सरकार का कहना है कि ये कानून पिछड़े मुस्लिमों और मुस्लिम महिलाओं को सशक्त बनाने और पारदर्शिता लाने के लिए लाया गया है। विपक्ष इसे पूरी तरह असंवैधानिक बता रहा है और कह रहा है कि ये मुसलमानों के हक़ों में दखल है।

लेकिन…इस बिल में हुआ क्या है? और इससे मुस्लिम और गैर-मुस्लिमों पर क्या असर पड़ेगा?
इस आर्टिकल में हम आसान भाषा में और विस्तार से समझेंगे:

  1. वक़्फ़ आखिर होता क्या है?
  2. भारत में वक़्फ़ का इतिहास कैसा रहा है?
  3. भारत में वक़्फ़ एक्ट की कहानी – 1954 से लेकर 2025 तक, क्या बदला 1995 और 2013 में?
  4. 2025 के संशोधन बिल में क्या नए बदलाव किए गए हैं?
  5. वक़्फ़ बिल 2025: अब असल ज़मीन पर क्या बदलाव देखने को मिलेंगे?

 



वक़्फ़ क्या है?

वक्फ इस्लामिक कानून के अंतर्गत एक प्रकार की धार्मिक एवं परोपकारी संपत्ति है, जिसे मुस्लिम समाज के कल्याण के लिए समर्पित किया जाता है। एक बार जब कोई प्रॉपर्टी वक़्फ़ घोषित हो जाती है, तो फिर वो न तो किसी को विरासत में दी जा सकती है, न बेची जा सकती है और न ही किसी को गिफ्ट में दी जा सकती है। मतलब साफ है – अब वो प्रॉपर्टी हमेशा के लिए एक नेक मकसद के लिए ही रहेगी।

 

वक़्फ़ स्ट्रक्चर क्या होता है?

जब बात वक़्फ़ की होती है, तो इसमें तीन मेन किरदार होते हैं – और हर एक का अपना खास रोल होता है।

  1. वाक़िफ़ (Waqif): ये वो इंसान होता है जो वक़्फ़ की शुरुआत करता है। मतलब, अपनी कोई प्रॉपर्टी अल्लाह के नाम पर दान कर देता है – चाहे वो लिखित में हो या बस इरादा ज़ाहिर करके।
  2. मवक़ूफ़ अलैह (Beneficiaries): ये वो लोग होते हैं जिन्हें उस वक़्फ़ से फायदा पहुंचता है। जैसे स्कूल, मस्जिद, या फिर ज़रूरतमंद लोग -जो भी उस दान से लाभ उठाते हैं।
  3.  मुतवाली (Mutawalli): ये वक़्फ़ की देखरेख करते हैं, मैनेजमेंट संभालते हैं और ध्यान रखते हैं कि सबकुछ सही तरीके से चल रहा हो।

भारत में वक़्फ़ का इतिहास


ज़मीनों की मिल्कियत से भी आगे, वक़्फ़ के अंदरूनी मामलों से भी परे, और उसकी आमदनी से भी हटकर, असल में बात है उस इतिहास की वक़्फ़ के पूरे सफ़र की। और जब हम इतिहास की बात करते हैं, तो हमें ब्रिटिश राज तक पीछे जाना पड़ता है, क्योंकि वक़्फ़ की प्रॉपर्टीज़ का मुद्दा तो तब भी उठा था।

वक़्फ़ के इतिहास में आज़ादी के बाद तीन साल बेहद अहम रहे हैं – 1954, 1995 और 2013।
इन तीनों सालों में वक़्फ़ से जुड़े जो बिल पास हुए, वो बाद में कानून बने और वक़्फ़ की तस्वीर ही बदल दी।
अब सवाल उठता है – ये सब इतना ज़रूरी क्यों है? क्यों बार-बार वक़्फ़ का इतिहास खंगाला जाता है?

असल में, भारत की राजनीति में “सेक्युलरिज़्म” एक ऐसा शब्द बन गया है जिसे सबसे ज़्यादा घसीटा और घुमा-फिराकर इस्तेमाल किया जाता है। नीति बनानी हो या चुनाव लड़ना हो सेक्युलरिज़्म की अपनी-अपनी परिभाषाएँ निकल आती हैं।

1810 से ही ब्रिटिश राज में वक़्फ़ की ज़मीनों, आमदनी और उसके काम-काज पर सवाल उठने लगे थे
लेकिन 1947 के बाद कुछ बदल गया। आज़ाद भारत में, जहाँ ज़वाबदेही होनी चाहिए थी, वहीं वक़्फ़ को और ताक़त मिली, इससे पहले कि हम नए बिल की बारीकियों में उतरें  ये समझें कि नया कानून क्या कहता है.  ज़रूरी है कि पहले थोड़ा पीछे जाएँ.

1810 में Bengal Code की Regulation 19 आई थी, जिसका मकसद था मस्जिदों, मंदिरों और पुलों जैसी पब्लिक बिल्डिंग्स की ज़मीनों से आने वाली आमदनी को सही तरीके से मेंटेन करना। ये Fort William Presidency के तहत लागू हुआ था। फिर 1817 में Madras Court की Regulation 7 आई, जिसमें religious trusts पर सख्त सरकारी निगरानी तय की गई — Revenue Board और State Affairs के ज़रिए।

अब 1839 में नया ट्विस्ट आया – ईसाई मिशनरी भड़क उठे।
उनका कहना था कि जब सरकार ईसाई है, तो वो भला हिंदू-मुसलमानों के पूजा-पाठ और धार्मिक ट्रस्ट कैसे चला सकती है? बस फिर क्या था 1840 से लेकर 1863 तक, ब्रिटिश सरकार ने मंदिरों और मस्जिदों से किनारा कर लिया।

लेकिन मज़े की बात ये है कि 1817 से 1839 तक नियम एक जैसे थे – हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए।
सरकारी निगरानी सब पर बराबर लागू थी। ब्रिटिश भी इस बात को लेकर एकदम साफ़ थे कि नियम सबके लिए एक जैसे होंगे।

1863 से 1920 के बीच सरकार की भूमिका बार-बार बहस का मुद्दा बनी रही। 1863 में Religious Endowments Act आया – इसने Revenue Boards की ज़िम्मेदारी हटा दी और सिविल कोर्ट को ये हक़ दे दिया कि अगर किसी को कोई दिक्कत हो तो वो अदालत में जा सकता है। मंदिर हो या मस्जिद नियम फिर भी सबके लिए बराबर थे।

1890 में Charitable Endowments Act आया, जिससे सरकार को दोबारा कंट्रोल मिल गया।
अब राज्य और केंद्र सरकारें ट्रस्टी या ख़ज़ांची नियुक्त कर सकती थीं ताकि ट्रस्ट की संपत्ति ठीक से संभाली जा सके।

1920 में Charitable and Religious Trusts Act आया।
इसने 1863 वाले कानून की कमियाँ दूर कीं – अब कोई भी व्यक्ति जो किसी ट्रस्ट में रुचि रखता हो, वो अदालत में जाकर पूछ सकता था कि उस ट्रस्ट में क्या हो रहा है। यानि पारदर्शिता बढ़ाने की कोशिश की गई।
वक़्फ़ का इतिहास सिर्फ़ एक समुदाय या बिल की बात नहीं है, ये बात है भारत की नीति निर्माण प्रक्रिया की, सेक्युलरिज़्म की परिभाषा की, और इस बात की कि कैसे एक कानूनी ढांचा समय के साथ विकसित हुआ।

अगर आप ब्रिटिश राज के 100 साल (1810 से 1920) की हिस्ट्री को गौर से देखें, तो एक बात बड़ी क्लियर है – ब्रिटिशों के कुछ नियमों में ज़बरदस्त स्थिरता थी।

उनका कहना साफ था:
👉 मंदिर और मस्जिद के लिए अलग-अलग नियम नहीं होंगे।
👉 सरकार की निगरानी किसी ना किसी रूप में बनी रहेगी।
👉 और ज़रूरत पड़ी, तो कोर्ट में मामले ले जाए जा सकते हैं।

अब आते हैं साल 1923 पर – जब Muslim Waqf Act आया। उस ज़माने के हिसाब से ये काफ़ी एडवांस क़ानून था।
इसमें वक़्फ़ प्रॉपर्टी की एडमिनिस्ट्रेशन, सही अकाउंटिंग और रजिस्टर पब्लिश करने जैसी बातों को पहली बार लीगल फ्रेम में डाला गया।
कोर्ट की निगरानी तो थी, मगर कोई अलग से सुपरवाइजरी बॉडी नहीं बनाई गई थी।
कोर्ट ने ये जरूर कहा कि मस्जिदों का मैनेजमेंट सही ढंग से होना चाहिए, लेकिन उन्होंने किसी नए संस्थान को इसकी देखरेख का हक़ नहीं दिया।

1923 का यही Waqf Act आख़िरी ब्रिटिश-राज वाला वक़्फ़ कानून था।


 

भारत में वक़्फ़ एक्ट की कहानी – 1954 से लेकर 2025 तक, क्या बदला 1995 और 2013 में?

 


जब 1947 में भारत आज़ाद हुआ, तो आज़ाद भारत की पहली सरकार के पास यही कानून था – जिसमें कोई सुपरवाइजरी बॉडी नहीं थी।

फिर आया 1954आज़ादी के बाद जब नया वक़्फ़ बिल तैयार किया गया, तो सबसे पहले जो चीज़ जोड़ी गई – वो थी एक अलग सुपरवाइजरी बॉडी।यानि जो काम ब्रिटिश राज ने नहीं किया, वो काम भारत सरकार ने 7 साल बाद कर दिखाया। और अब ये सिर्फ एक कानून नहीं था – ये बना सेंटरल लॉ जिसने वक़्फ़ प्रॉपर्टीज को मैनेज करने के लिए काफी बड़े अधिकार दिए।

सबसे बड़ा बदलाव क्या हुआ?
👉 पहली बार Waqf Boards बनाए गए – यानि एक सशक्त निकाय जो वक़्फ़ की देखरेख करेगा।
👉 साथ ही Survey Commissioners की पोस्ट बनाई गई, जिन्हें राज्य सरकार के साथ काम करने वाला माना गया।

लेकिन यही सर्वे कमीशनर वाला पॉइंट बाद में जाकर बना एक बड़ा विवाद –
1984 में जब वक़्फ़ अमेंडमेंट एक्ट आया, तो मुस्लिम समूहों और सरकार के बीच तकरार शुरू हो गई।

अब बात करते हैं उस दौर की जब वक़्फ़ को लेकर मुस्लिम समुदाय की नाराज़गी धीरे-धीरे उभरने लगी थी।

देखिए, मुस्लिम ग्रुप्स के पास कुछ ठोस शिकायतें थीं:

👉 सबसे पहली – उन्हें लगा कि जो वक़्फ़ प्रॉपर्टीज के सर्वे हुए थे, वो पुराने हो चुके हैं।
👉 ऊपर से जो सर्वे कमिश्नर सरकार के अधीन माने जाते थे, उनका काम ढंग से नहीं हो रहा था।
इस वजह से कई वक़्फ़ प्रॉपर्टीज पर कब्ज़ा हो गया, और किसी को खबर तक नहीं हुई।                                                                                          👉 दूसरा गुस्सा इस बात पर था कि जो प्रॉपर्टीज लिस्ट में नहीं थीं, उनकी कोई सुध नहीं ली गई।
कोई अपडेट, कोई रिव्यू – कुछ नहीं।                                                                                                                                                             👉 और तीसरी और सबसे बड़ी बात – 1954 के वक़्फ़ एक्ट में सिर्फ चंद अमेंडमेंट करके सरकार ने इत्मिनान कर लिया था।
मुस्लिम ग्रुप्स कहते थे, “भाई ये छोटा-मोटा मेकअप नहीं चाहिए, हमें तो पूरा मेकओवर चाहिए!” एक बड़ा ओवरहॉल।
1984 में एक वक़्फ़ अमेंडमेंट आया, लेकिन कोई ज़्यादा हलचल नहीं मची।
असल में यह अमेंडमेंट ख़बरों में कम और मुस्लिम कम्युनिटी के बैकलैश की वजह से ज़्यादा मशहूर हुआ।

1984 की नाराज़गी ने रास्ता बनाया एक नए वक़्फ़ एक्ट की –
जो आया 1995 में।

यह वही कानून है, जिसे आज 2024 और 2025 के अमेंडमेंट बिल्स में “Principal Act” के नाम से रेफर किया जा रहा है।

1995 का वक़्फ़ एक्ट भी मुस्लिम समूहों को रास नहीं आया।फिर से असंतोष। फिर से मांग उठी – सुधारों की। एक और JPC (Joint Parliamentary Committee) बैठा दी गई। और फाइनली… 2013 में आया एक नया वक़्फ़ बिल,
जो पास होते ही बना नया वक़्फ़ एक्ट — UPA सरकार के आख़िरी महीनों में।

कहानी लंबी है, लेकिन दिलचस्प भी 

अगर हम 1923 के मुस्लिम वक़्फ़ एक्ट को देखें, तो उसमें वक़्फ़ को परिभाषित किया गया था ऐसे –
“कोई मुसलमान व्यक्ति किसी संपत्ति को हमेशा के लिए धार्मिक, परोपकारी या नेक मकसद के लिए समर्पित कर दे।”
बस, यही था वक़्फ़।

लेकिन फिर आया 1954 का वक़्फ़ एक्ट, और इसमें ये परिभाषा थोड़ी और तगड़ी हो गई।
अब इसमें “वक़्फ़ बाय यूज़” और “वक़्फ़ अल-औलाद” जैसे कॉन्सेप्ट भी जोड़ दिए गए।

👉 वक़्फ़ बाय यूज़ का मतलब ये कि अगर कोई प्रॉपर्टी लगातार धर्म या सेवा कार्यों में इस्तेमाल हो रही है,
तो भले ही कोई कागज़ात न हो, वो प्रॉपर्टी ऑटोमैटिकली वक़्फ़ मानी जाएगी।

👉 वहीं वक़्फ़ अल-औलाद का मतलब होता है कि कोई परिवार अपनी प्रॉपर्टी की आमदनी को अपने वंशजों के भले के लिए डेडिकेट कर दे।

अब तक सब कुछ मुस्लिम समुदाय के दायरे में ही था, लेकिन 1995 में थोड़ा गेम चेंज हुआ। 1995 के एक्ट में, जिसे बाद में 2013 में अमेंड भी किया गया, वो लाइन जो कहती थी “dedication by a person professing Muslim faith” उसे बदल कर कर दिया गया – “dedication by any person.” मतलब, अब ये जरूरी नहीं कि वक़्फ़ सिर्फ कोई मुसलमान ही करे। अब कोई भी व्यक्ति, चाहे किसी भी धर्म का हो,अगर वो किसी संपत्ति को धार्मिक या चैरिटी के मकसद से समर्पित करता है  तो वो वक़्फ़ में शामिल हो सकता है। ये छोटा सा वाक्य बदलकर पूरी परिभाषा ही बदल दी गई और साथ ही उस सोच को भी,जो वक़्फ़ को लेकर दशकों से बनी हुई थी।

अब एक बहुत ही दिलचस्प और अहम पॉइंट पर नज़र डालते हैं
1995 के वक़्फ़ एक्ट का सेक्शन 40, जिसे **2013 में और भी पावरफुल बना दिया गया था।

इस सेक्शन ने वक़्फ़ बोर्ड को ये ताक़त दे दी कि वो खुद तय कर सकता है कि कौन-सी प्रॉपर्टी वक़्फ़ है और कौन-सी नहीं।                                            और अब इसमें वक़्फ़ बाय यूज़ का कॉन्सेप्ट भी जोड़ दो – मतलब कोई भी प्रॉपर्टी अगर सालों से किसी धार्मिक या चैरिटेबल काम में इस्तेमाल हो रही है – ये दावा अब सिर्फ मुस्लिम प्रॉपर्टीज़ तक सीमित नहीं रहा। क्योंकि 2013 में जो अमेंडमेंट हुआ, उसने पहले ही वक़्फ़ के दायरे में नॉन-मुस्लिम्स को भी शामिल कर दिया था। तो अब वक़्फ़ बोर्ड, किसी भी धर्म के इंसान की प्रॉपर्टी को “यूज़ बाय वक़्फ़” कह कर क्लेम कर सकता था।

अब बात करते हैं ज्यूडिशियरी यानी न्याय व्यवस्था की…

1954 में, जब ये एक्ट बना था, तब सिविल कोर्ट्स को साफ तौर पर अधिकार दिए गए थे कि
अगर कोई विवाद हो, तो आम आदमी कोर्ट जा सके। लेकिन 1995 से 2013 के बीच क्या हुआ? वक़्फ़ ट्राइब्यूनल्स का रोल इतना बढ़ा दिया गया कि अब अगर वक़्फ़ आपकी प्रॉपर्टी पर दावा कर दे. तो आप सीधा सिविल कोर्ट नहीं जा सकते। पहले वक़्फ़ ट्राइब्यूनल जाओ, फिर वहां से हाई कोर्ट तक की लड़ाई लड़ो।


वक़्फ़ की सर्वे की फंडिंग कौन करता है?

1954 वाले एक्ट में बहुत क्लियर था  वक़्फ़ की प्रॉपर्टी से जो आमदनी होगी, उसी से सर्वे कराया जाएगालेकिन 1995 के बाद और फिर 2013 के अमेंडमेंट में ये सारा खर्चा शिफ्ट कर दिया गया राज्य सरकारों पर। मतलब सीधे-सीधे टैक्सपेयर्स की जेब से पैसे जाने लगे

 

अब चलो बात करते हैं वक़्फ़ एक्ट के सबसे ज़रूरी हिस्से की – Section 40 की।

सेक्शन 40 तो पूरे वक़्फ़ एक्ट का दिल है, और इसकी जड़ें जाती हैं 1954 के एक्ट के सेक्शन 27 तक। 1954 में ये बोला गया था कि वक़्फ़ बोर्ड को ये पावर दी जाती है कि वो खुद तय कर सकता है कि कोई प्रॉपर्टी वक़्फ़ है या नहीं। पहले ये ताक़त कोर्ट्स के पास थी, लेकिन 1954 में इसे शिफ्ट करके वक़्फ़ बोर्ड को दे दिया गया। लेकिन फिर 1995 आया, और यहीं से असली गेम चेंज शुरू हुआ। अब वक़्फ़ बोर्ड को इतनी ताक़त मिल गई कि वो Indian Trust Act, 1882 और Society Registration Act, 1860 के तहत रजिस्टर्ड ट्रस्ट्स और सोसाइटीज़ की प्रॉपर्टीज़ पर भी दावा कर सकता था।

और सेक्शन 40 ने तो इसमें चार चांद लगा दिए – अब वक़्फ़ बोर्ड को ये छूट मिल गई कि अगर उसे “ऐसा लगता है” कि कोई प्रॉपर्टी उनकी हो सकती है, तो वो इनक्वायरी शुरू कर सकता है, शो कॉज़ नोटिस भेज सकता है, और अगर उसे लगे कि हाँ ये तो हमारी ही है, तो वो प्रॉपर्टी को वक़्फ़ में रजिस्टर्ड करवा सकता है।कोई डॉक्यूमेंट या ठोस प्रूफ की ज़रूरत नहीं।

यही वजह है कि आज हम हर राज्य से वक़्फ़ के नाम पर प्रॉपर्टीज़ पर क्लेम की ख़बरें सुनते रहते हैं।कहीं गुजरात में एक सरकारी ऑफिस वक़्फ़ की प्रॉपर्टी बता दिया गया, तो कहीं तमिलनाडु में 1500 साल पुराना गाँव वक़्फ़ की लिस्ट में आ गया।ये सब इसलिए हुआ क्योंकि 1995 के एक्ट ने वक़्फ़ बोर्ड को वो पावर दे दी जो पहले कभी नहीं थी।

 

अब ज़रा वक़्फ़ प्रॉपर्टी की ट्रांसफर या ‘एलिएनेशन’ की भी बात कर लेते हैं।

1954 का जो ओरिजिनल वक़्फ़ एक्ट था ना, उसमें ये बिलकुल भी क्लियर नहीं था कि अगर किसी वक़्फ़ की ज़मीन को बेचना हो, गिफ्ट करना हो या ट्रांसफर करना हो, तो क्या प्रोसेस होगा?                                                                                                                                                        फिर आया 1995, तब कहा गया कि अगर वक़्फ़ प्रॉपर्टी को गिफ्ट, एक्सचेंज या मॉर्गेज (बंधक) करना है,
तो पहले बोर्ड की परमिशन लेनी पड़ेगी। लेकिन फिर 2013 में कुछ बड़ा हो गया।                                                                                            सरकार को शायद ये सूझा कि क्यों न वक़्फ़ प्रॉपर्टी की ट्रांसफरिंग को लगभग पूरी तरह बैन ही कर दिया जाए! बस एक ही छूट दी – अगर लीज़ (lease) पर देनी है, तो कर सकते हो।मतलब अब वक़्फ़ की ज़मीन न गिफ्ट हो सकती है,न बेची जा सकती है, न एक्सचेंज, न मॉर्गेज।
और यही नहीं 2013 में नए land acquisition rules भी जोड़ दिए गए। वक़्फ़ प्रॉपर्टी का ट्रांसफर लगभग नामुमकिन हो गया।

2013 में Section 108A को जोड़ दिया गया।

अब ये सेक्शन कहता है कि  वक़्फ़ एक्ट की ताक़त सबसे ऊपर है। मतलब? कोई भी दूसरा कानून चाहे वो प्रॉपर्टी लॉ हो, ट्रस्ट लॉ हो या सरकारी ज़मीन अधिग्रहण वाला कानून सब वक़्फ़ एक्ट के नीचे आते हैं।

अब सुनो, Section 108 से भी ज़्यादा शॉकिंग चीज़ क्या है? – Section 107, वही 1995 वाले वक़्फ़ एक्ट का सेक्शन।                                        अब अगर आपको पता न हो, तो बता दें  Limitations Act 1963 नाम का एक क़ानून है।
बिलकुल सिंपल भाषा में – अगर किसी ज़मीन या प्रॉपर्टी को लेकर झगड़ा है, तो आप 12 साल के अंदर ही उसका केस कर सकते हो। मतलब, 12 साल तक अगर आपने आवाज़ नहीं उठाई, तो मान लिया जाएगा कि मामला खतम। लेकिन,वक़्फ़ केस में ऐसा कुछ नहीं चलता! क्योंकि Section 107 कहता है कि Limitations Act वक़्फ़ पर लागू ही नहीं होता।

और अब बात करते हैं 2013 में जोड़ा गया एक और  सेक्शन –Section 104Bइस सेक्शन का कहना है कि अगर वक़्फ़ ट्राइब्यूनल ने कोई फैसला सुनाया, और वो फैसला सरकारी एजेंसी के खिलाफ़ है, तो उस एजेंसी को 6 महीने के अंदर वो ज़मीन वक़्फ़ बोर्ड को लौटानी ही होगी। और ये कोई “अगर-मगर” वाली बात नहीं थी “ज़रूरी” बना दिया गया था!

अब सोचिए  मान लीजिए कोई सरकारी अस्पताल या स्कूल पिछले 40 साल से एक ज़मीन पर बना है।फिर वक़्फ़ ट्राइब्यूनल कहता है  “भाई, ज़मीन हमारी थी। मुआवज़ा सही नहीं दिया गया था। हमें वापिस चाहिए।” तो अब सरकार को क्या करना है? 6 महीने के अंदर-अंदर उस ज़मीन को खाली करके वापस देना है। क्योंकि 2013 में जोड़ा गया Section 108A भी यही कहता है –“कोई और कानून वक़्फ़ एक्ट से ऊपर नहीं हो सकता!”


 

2025 के संशोधन बिल में क्या नए बदलाव किए गए हैं?

 

आते हैं बिल के पहले बड़े बदलाव पर। 2025 के इस नए कानून में सबसे पहली चीज़ बदली गई है – वो लोग कौन हैं जो वक़्फ़ के लिए प्रॉपर्टी डेडिकेट कर सकते हैं।                                                                                                                                                                                                               

अब नया नियम क्या कहता है? वो व्यक्ति जो वक़्फ़ के लिए संपत्ति समर्पित करना चाहता है,
उसे कम से कम **पिछले 5 साल से इस्लाम धर्म का पालन कर रहा होना चाहिए।”                                                                                                   

यह सुनते ही विपक्ष उछल पड़ा  ” ये 5 साल कैसे प्रूव होंगे?”, “कौन तय करेगा कि बंदा 5 साल से मुस्लिम है?”
“आधार कार्ड देखोगे या नमाज़ की चिट्ठी लाओगे?” और सच कहें तो ये सवाल वाजिब हैं! क्योंकि इस ‘प्रैक्टिसिंग मुस्लिम’ की परिभाषा अभी पूरी तरह क्लियर नहीं है। क्या पब्लिक रिकॉर्ड्स से तय होगा? या कोई धार्मिक संस्था बताएगी? लेकिन इतना पक्का है कि अब या गैर-मुस्लिम वक़्फ़ में डेडिकेशन नहीं कर सकते। “वक़्फ़ इकोसिस्टम” अब पूरी तरह मुस्लिम-ओनली बना दिया गया है।

अब एक और मुद्दा था,  “Encroachment यानी कब्ज़ा”

2013 में, जब सरकार ने अमेंडमेंट किए थे,तब वक़्फ़ प्रॉपर्टीज़ पर “कब्ज़ा” करने वालों की परिभाषा बदल दी गई थी। कैसे? – अब इसमें सरकारी जमीनें भी आ गई थीं! मतलब, अगर कोई सरकारी ऑफिस या जमीन वक़्फ़ से टकराती, तो वक़्फ़ ट्राइब्यूनल कह सकता था –  ” ये हमारी ज़मीन है। हटो यहां से!”। ये अब 2025 के नए बिल में हटा दिया गया है। मतलब, अब वक़्फ़ प्रॉपर्टी पर सरकारी कब्ज़े को “कब्ज़ा” नहीं माना जाएगा। और ये सिर्फ आज से नहीं, पिछली तारीख़ों से भी लागू होगा। मतलब, retroactive protection भी दी गई है।
इस नए कानून में सरकारी प्रॉपर्टी की जो परिभाषा दी गई है, वो बहुत वाइड है :

  • केंद्र सरकार
  • राज्य सरकार
  • नगर पालिकाएं (Municipalities)
  • पंचायतें
  • सरकारी विभाग और उनसे जुड़े ऑफिस
  • Autonomous Bodies (स्वायत्त संस्थाएं) जो सरकार के तहत आती हैं
  • और कोई भी संस्था जो सरकार के कंट्रोल या मालिकाना हक़ में हो

अब बहुत से लोगों के मन में सवाल था  “ASI यानी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की प्रॉपर्टी का क्या होगा?” क्योंकि पहले वक़्फ़ बोर्ड ASI के कुछ स्थलों पर भी दावा कर देता था।लेकिन इस नई परिभाषा  के बाद ASI जैसी संस्थाएं भी सुरक्षित दायरे में आ जाती हैं।

“Waqf by User” का खेल खत्म?                                                                                                                                                                          अब आते हैं  तीसरे बड़े बदलाव पर, जिसे लोगों ने जल्दी में पढ़ा… और अपने-अपने हिसाब से निष्कर्ष निकाल लिए। क्या लिखा था उस क्लॉज़ में?  “अगर कोई वक़्फ़ बाय यूज़र प्रॉपर्टी 2025 के अमेंडमेंट से पहले रजिस्टर्ड है, तो वो वक़्फ़ मानी जाएगी… जब तक कि वो प्रॉपर्टी सरकारी न हो या विवादित न हो।”                                                                                                                                                                                                                    “Waqf by User” होता क्या है भाई?                                                                                                                                                                   सीधा समझो: मान लो तुम्हारे घर के बगल में एक खाली प्लॉट है।किसी दिन कोई आया और वहां नमाज़ पढ़नी शुरू कर दी।
तुमने कुछ नहीं कहा लेकिन वो हर दिन आने लगे। 1 साल, 5 साल, 10 साल… और फिर एक दिन बोले,
“अब ये ज़मीन वक़्फ़ है।” क्यों? क्योंकि यहां धार्मिक काम हो रहे हैं।किसकी ज़मीन है? इससे कोई मतलब नहीं। यही होता था Waqf by User किसी भी ज़मीन को सिर्फ उसके उपयोग के आधार पर वक़्फ़ घोषित कर देना,चाहे मालिक कोई और हो, और वो भी बिना किसी कागज़ी प्रक्रिया के।                    कुछ चौंकाने वाले आंकड़े :

  • कुल 37 लाख एकड़ ज़मीन वक़्फ़ के नाम है।
  • उसमें से 22 लाख एकड़ सिर्फ Waqf by User से जुड़ी है।
  • 8.7 लाख प्रॉपर्टी में से 4 लाख से ज़्यादा भी इसी कैटेगरी में आती हैं। 

अब 2025 वाला कानून क्या कहता है? :                                                                                                                                                    “अगर वक़्फ़ बाय यूज़र प्रॉपर्टी properly registered नहीं है, तो वो अब वक़्फ़ नहीं मानी जाएगी।”  इससे न सिर्फ गैर-मुस्लिम बल्कि कई मुस्लिम ज़मीन मालिकों को भी साफ़गोई और राहत मिलेगी।

 

अब बात कर रहे हैं वक़्फ़ एक्ट 1995 की सेक्शन 40 की।जिसे अगर एक लाइन में समझना हो तो : “वक़्फ़ को लगे कि कोई ज़मीन उसकी है, तो वो उसकी ही है।” किसी का मालिकाना हक? कानूनी दस्तावेज़? सरकारी रजिस्ट्रेशन? सब बेकार।अगर वक़्फ़ बोर्ड ने “मान लिया” कि ज़मीन उनकी है,
तो समझो हो गया फैसला

अब ज़रा सोचिए, सेक्शन 40 + Waqf by User = ब्लास्ट कॉम्बिनेशन! सेक्शन 40 अकेले ही खतरनाक था, लेकिन जब इसका हाथ पकड़ा Waqf by User ने, तो मामला सीधा था, किसी भी ज़मीन पर दावा करने का ओपन पास बन गया।कोई पूछने वाला नहीं, कोई हिसाब नहीं, ना कोई ट्रांसपेरेंसी, ना कोई जवाबदेही।

अब 2025 का बिल आया और क्या बदला है – सेक्शन 40 अब वक़्फ़ एक्ट का हिस्सा ही नहीं रहेगा। 2025 के बिल में 5 अलग-अलग जगहों पर,वक़्फ़ ट्राइब्यूनल की “फाइनल अथॉरिटी” का तमगा हटा दिया गया है। पहले क्या होता था? अगर वक़्फ़ ट्राइब्यूनल ने कह दिया कि कोई ज़मीन वक़्फ़ की है, तो भले ही आपको लगे कि फैसला ग़लत है,आपके पास ज़्यादा रास्ते नहीं बचते थे। पर अब? अब 90 दिनों के अंदर हाई कोर्ट में सीधा अपील की जा सकती है।यानि अब वक़्फ़ ट्राइब्यूनल का फैसला बाइंडिंग नहीं है। अब कोर्ट का ओवरसाइट (overreach)( नियंत्रण और निगरानी ) और ज़्यादा हो गई है। जो लोग वक़्फ़ ट्राइब्यूनल के फैसले से परेशान हैं, वो सीधे हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं। अब कोई भी ट्राइब्यूनल आपकी ज़मीन पर फ़ैसला सुना दे,
तो आप 90 दिन के अंदर कोर्ट जा सकते हैं और अपना पक्ष रख सकते हैं।

वक़्फ़ में हुए तीन सबसे बड़े बदलाव

अब बात करते हैं वक़्फ़ एक्ट में हुए तीन सबसे बड़े बदलावों की

 1. सेक्शन 107 – अब टाइम लिमिट लगेगी

आपने लिमिटेशन एक्ट, 1963 का नाम तो सुना होगा? इस कानून के मुताबिक अगर आपकी ज़मीन किसी ने 2010 में कब्ज़ा ली थी, तो आपको 2022 तक केस करना होता, वरना आपका हक़ खत्म। लेकिन… वक़्फ़ पर ये लिमिट लागू नहीं थी! वक़्फ़ ट्राइब्यूनल या कोर्ट में 50 साल, 100 साल, यहाँ तक कि 150 साल बाद भी जाकर कह सकता था – “ये ज़मीन हमारी है, हमें वापस दो!”                                                                                                           अब नए कानून में सेक्शन 107 को बदल दिया गया है। अब वक़्फ़ पर भी वही 12 साल वाली लिमिट लागू होगी।

2. सेक्शन 104B 

2013 के एक अमेंडमेंट में सेक्शन 104B जोड़ा गया था।इसमें लिखा था कि अगर कोई वक़्फ़ ज़मीन सरकारी एजेंसी के पास है, और ट्राइब्यूनल कह दे कि उसे वापस करो तो सरकार को 6 महीने के अंदर वो ज़मीन खाली करके लौटानी होती थी। अब सेक्शन 104B को पूरा हटा दिया गया है।सरकार पर अब ऐसा कोई दबाव नहीं रहेगा। इससे अब ज़मीन ट्रांसफर, मुआवज़ा और सरकारी प्रोजेक्ट्स में आने वाली रुकावटें भी ख़त्म हो जाएंगी।

3. सेक्शन 108 और 108A

ये सेक्शन कहता था कि अगर कोई वक़्फ़ कानून किसी और कानून से टकरा रहा हो, तो वक़्फ़ कानून ही ऊपर माने जाएंगे।मतलब, चाहे प्रॉपर्टी लॉ हो, लैंड ट्रांजैक्शन लॉ हो या लैंड एक्विज़िशन लॉ – अगर टकराव हुआ, तो वक़्फ़ वाला कानून सबको ओवरराइड कर देगा! अब सेक्शन 108 और 108A दोनों को नई बिल से हटा दिया गया है।


वक़्फ़ बिल 2025: अब असल ज़मीन पर क्या बदलाव देखने को मिलेंगे?

तो अब तक हमने वक़्फ़ एक्ट 2025 के तहत हुए 8 बड़े बदलावों की बात की। लेकिन अब ज़रा रुककर सोचते हैं — असल ज़मीन पर क्या असर होगा? लोगों की ज़िंदगी में क्या वाकई कुछ बदलेगा?

सिर्फ़ गैर-मुस्लिम ही नहीं, मुसलमान भी थे वक़्फ़ सिस्टम से परेशान                                                                                                                               ये मान लेना आसान है कि वक़्फ़ एक्ट से सिर्फ़ गैर-मुस्लिम ही प्रभावित हो रहे थे। लेकिन असलियत ये है कि कई मुस्लिम परिवार भी परेशान थे। उनकी ज़मीनें वक़्फ़ के नाम पर ब्लॉक कर दी जाती थीं, कोई रेवेन्यू नहीं मिलता था।अब नया कानून कहता है -जो ज़मीन जिसकी है, सिर्फ़ वही वक़्फ़ डेडिकेशन कर सकता है। यानि अब कोई भी आकर बस इस्तेमाल के आधार पर ज़मीन को वक़्फ़ नहीं घोषित कर सकता।इससे आर्थिक रूप से कमज़ोर मुस्लिमों को भी राहत मिलेगी, क्योंकि अब उनकी ज़मीनें “बिना कारण” वक़्फ़ नहीं बनाई जा सकेंगी।

अब सरकार वक़्फ़ से ऊपर है – बराबरी नहीं, सुपरवाइज़री रोल                                                                                                                                  पहले तो ऐसा लगता था कि सरकार खुद वक़्फ़ के नीचे खड़ी है।वक़्फ़ कह दे — “ये ज़मीन हमारी है”,
और सरकार को 6 महीने में वो ज़मीन खाली करनी पड़ती थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब सरकार वक़्फ़ के ऊपर एक निगरानी संस्था के तौर पर काम करेगी।

वक़्फ़ अब बिना कागज़ात ज़मीनें नहीं हथिया सकता                                                                                                                                               पिछले 10 सालों में वक़्फ़ ने हजारों एकड़ ज़मीन सिर्फ़ यूज़ के आधार पर ले ली थी। ना कागज़ात, ना ट्रांजैक्शन अब ये सब बंद हो चुका है।अब से वक़्फ़ को प्रॉपर्टी डेडिकेशन के लिए  मालिकाना हक़ और सही दस्तावेज़ दिखाने होंगे।

तो अब वक़्फ़ का क्या होगा?

  • वक़्फ़ की मौजूदा संपत्तियाँ सुरक्षित रहेंगी
  • वक़्फ़ एक प्रबंधन संस्था के तौर पर भी बना रहेगा
  • लेकिन अब बिना दस्तावेज़ों के ज़मीन कब्ज़ा करने का दौर ख़त्म हो चुका है

वक़्फ़ बिल 2025: क्या हैं इसके आर्थिक मायने?                                                                                                                                                       अब एक बहुत बड़ा सवाल – क्या वक़्फ़ बिल 2025 का कोई आर्थिक असर भी है?कई लोग मानते हैं कि ये सिर्फ़ कानूनी बदलाव हैं, लेकिन ऐसा सोचना एक बड़ी भूल होगी। सोचिए, वक़्फ़ के पास पूरे 37 लाख एकड़ ज़मीन है। और उस पर होने वाली सालाना कमाई सिर्फ़ ₹166 करोड़
मतलब, एक एकड़ ज़मीन से सिर्फ़ ₹500 की आमदनी।                                                                                                                                  अब ज़रा एक छोटे किसान को देखिए, जो शायद सबसे पुराना खेती का तरीका अपनाता हो, और समाज के आर्थिक पिरामिड के सबसे नीचे खड़ा हो वो भी एक एकड़ ज़मीन से इससे 100 गुना ज़्यादा कमाई करता है।

तो फिर सवाल उठता है इतने सालों तक वक़्फ़ ने इतनी ज़मीन का किया क्या? अगर इतनी ज़मीन से सिर्फ़ ₹500 प्रति एकड़ आ रहा था, तो ये ज़मीनें ब्लॉक क्यों की जा रही थीं?

इस बिल से सिर्फ़ कानूनी सिस्टम ठीक नहीं होगा, बल्कि एक बड़ा आर्थिक रिफॉर्म भी आएगा।

  • अब वक़्फ़ ज़मीनें बेहतर उपयोग में लाई जा सकेंगी
  • ज़मीन के असली मालिक को उसका पूरा हक़ और रिटर्न मिलेगा
  • ब्लॉक की गई प्रॉपर्टीज़ अब रेवेन्यू जेनरेट कर पाएंगी 

क्या वक़्फ़ बिल 2025 भारत में मुसलमानों के अधिकारों को कमजोर करता है?                                                                                                         अब आते हैं उस सवाल पर जो कई लोग पूछ रहे हैं  “क्या ये बिल भारत में मुसलमानों की हैसियत को कमजोर करता है?” क्या इससे उनकी नागरिकता, उनके इबादतगाह, उनके धार्मिक अधिकार छीने जा रहे हैं? साफ़ जवाब है – बिल्कुल नहीं

इस बिल का ना तो मस्जिदों से लेना-देना है, ना नमाज़ से, ना ही किसी धर्म से।ना ही इससे किसी की नागरिकता पर असर पड़ता है, ना ही किसी के बुनियादी अधिकार छीने जा रहे हैं। सरकार को मस्जिदों से कोई लेना-देना नहीं है। सरकार का फोकस धार्मिक भावनाओं पर नहीं,बल्कि ज़मीन और क़ानूनी सिस्टम पर है।इस बिल को समझने के लिए एक बात याद रखिए – ये धर्म का नहीं, रियल एस्टेट का मामला है।
ये उस सिस्टम की बात कर रहा हैजहां कोई जवाबदेही नहीं थी, जहां बिना दस्तावेज़ों के ज़मीन पर दावा किया जा रहा था।

तो इस बिल को धर्म से मत जोड़िए ये मुसलमानों के खिलाफ़ नहीं है, ये किसी की इबादत पर रोक नहीं लगाता,ये सिर्फ़ सिस्टम में पारदर्शिता लाने की कोशिश है।

निष्कर्ष

वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025  और अब एक्ट, वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और प्रशासन में महत्वपूर्ण बदलाव लाने का प्रयास करता है। इसका उद्देश्य पारदर्शिता, जवाबदेही और कुशल प्रबंधन सुनिश्चित करना है, जिससे वक्फ संपत्तियों का उपयोग समाज के कल्याण के लिए अधिक प्रभावी ढंग से किया जा सके।

हालांकि, बिल के कुछ प्रावधान विवादास्पद हैं और विभिन्न हितधारकों के बीच चिंता का विषय हैं। इन चिंताओं का समाधान करने के लिए, सभी हितधारकों के बीच संवाद और समझौता आवश्यक है।

मैं आशा करता हूँ कि इस लेख ने आपको वक्फ (संशोधन) बिल 2025 और एक्ट के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद की होगी। आपके पास इस विषय पर कोई प्रश्न या विचार हैं? आप इस बिल के बारे में क्या सोचते हैं? नीचे कमेंट करें और इस जानकारी को शेयर करें।


 

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